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शुक्रवार, 25 दिसंबर 2020

●Trimbakeshwar Jyotirlinga temple

 दोस्तों आज हम आपको अध्यात्मिक से जुड़ी कुछ जानकारी देने वाले हैं हम 1 ज्योतिर्लिंग के बारे में आपको जानकारी देंगे और वह है त्रयम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग जो भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है

महादेव का यह ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के नासिक जिले में स्थित है। यह मंदिर नासिक रेलवे स्टेशन से लगभग 40 किमी दूर त्रयंबक नामक स्थान पर ब्रह्मगिरि पर्वत के पास अवस्थित है। मंदिर के अंदर तीन छोट-छोटे लिंग हैं, जिन्हे ब्रह्मा, विष्णु और महेश भगवन का प्रतीक माना जाता है। ये एकमात्र ज्योतिर्लिंग है जहाँ तीनों देव, ब्रह्मा, विष्णु और महेश एक साथ विराजते हैं। शिवपुराण के अनुसार ब्रह्मगिरि पर्वत के ऊपर जाने के लिये चौड़ी-चौड़ी सात सौ सीढ़ियाँ बनी हुई हैं। इन सीढ़ियों पर चढ़ने के बाद 'रामकुण्ड' और 'लष्मणकुण्ड' मिलते हैं और शिखर के ऊपर पहुँचने पर गोमुख से निकलती हुई भगवती गोदावरी के दर्शन होते हैं।    


● त्रयम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग से जुड़ी कथा



इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना के विषय में शिवपुराण में यह कथा वर्णित है। एक बार महर्षि गौतम के तपोवन में रहने वाले ब्राह्मणों की पत्नियाँ किसी बात पर उनकी पत्नी अहिल्या से नाराज हो गईं। उन्होंने अपने पतियों को ऋषि गौतम का अपमान करने के लिए प्रेरित किया। उन ब्राह्मणों ने इसके निमित्त भगवान्‌ श्रीगणेशजी की आराधना की। उनकी आराधना से प्रसन्न हो गणेशजी ने प्रकट होकर उनसे वर माँगने को कहा इस पर उन ब्राह्मणों ने कहा- 'प्रभो! यदि आप हम पर प्रसन्न हैं तो किसी प्रकार ऋषि गौतम को इस आश्रम से बाहर निकाल दें।' उनकी यह बात सुनकर गणेशजी ने उन्हें ऐसा वर माँगने के लिए समझाया। किंतु वे अपने आग्रह पर अटल रहे। अंततः गणेशजी को विवश होकर उनकी बात माननी पड़ी। अपने भक्तों का मन रखने के लिए वे एक दुर्बल गाय का रूप धारण करके ऋषि गौतम के खेत में जाकर रहने लगे। गाय को फसल चरते देखकर ऋषि बड़ी नरमी के साथ हाथ में तृण लेकर उसे हाँकने के लिए लपके। उन तृणों का स्पर्श होते ही वह गाय वहीं मरकर गिर पड़ी। गाय के मरने से बड़ा हाहाकार मचा। सारे ब्राह्मण एकत्र होकर गौ-हत्यारा कहकर ऋषि गौतम की भर्त्सना करने लगे। ऋषि गौतम इस घटना से बहुत आश्चर्यचकित और दुःखी थे। इस पर उन सारे ब्राह्मणों ने कहा कि तुम्हें यह आश्रम छोड़कर अन्यत्र कहीं दूर चले जाना चाहिए। 

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गौ-हत्यारे के निकट रहने से हमें भी पाप लगेगा। पितृ गण एवं देव गण हमारे यज्ञभाग को नहीं स्वीकारेंगे। विवश होकर ऋषि गौतम अपनी पत्नी अहिल्या के साथ वहाँ से एक कोस दूर जाकर रहने लगे। किंतु उन ब्राह्मणों ने वहाँ भी उनका रहना दूभर कर दिया। वे कहने लगे- 'गो-हत्या के कारण तुम्हें अब वेद-पाठ और यज्ञादि के कार्य करने का कोई अधिकार नहीं रह गया।' अत्यंत अनुनय भाव से ऋषि गौतम ने उन ब्राह्मणों से प्रार्थना की कि आप लोग मेरे प्रायश्चित और उद्धार का कोई उपाय बताएँ। तब उन ऋषियों ने कहा- 'गौतम! तुम अपने पाप को सर्वत्र सबके समक्ष प्रकट करते हुए तीन बार पूरी पृथ्वी की परिक्रमा करो। फिर लौटकर यहाँ एक महीने तक व्रत करो। इसके बाद 'ब्रह्मगिरी' की 101 परिक्रमा करने के बाद तुम्हारी शुद्धि होगी। अथवा यहाँ गंगाजी को लाकर उनके जल से स्नान करके एक करोड़ पार्थिव शिवलिंगों से शिवजी की आराधना करो। इसके बाद पुनः गंगाजी में स्नान करके इस ब्रह्मगीरि की 11 बार परिक्रमा करो। फिर सौ घड़ों के पवित्र जल से पार्थिव शिवलिंगों को स्नान कराने से तुम्हारा उद्धार होगा। उन ऋषियों के कथनानुसार महर्षि गौतम वे सारे कार्य पूरे किए तथा पत्नी के साथ पूर्णतः तल्लीन होकर भगवान शिव की आराधना करने लगे। महर्षि गौतम एवं उनकी पत्नी अहल्या से प्रसन्न हो भगवान शिव ने प्रकट होकर उनसे वर माँगने को कहा। महर्षि गौतम ने उनसे कहा- 'भगवन्‌ मैं यही चाहता हूँ कि आप मुझे गो-हत्या के पाप से मुक्त कर दें।' भगवान्‌ शिव ने कहा- 'गौतम ! तुम सर्वथा निष् गो-हत्या का अपराध तुम पर छल पूर्वक लगाया गया था। छल पूर्वक ऐसा करवाने वाले तुम्हारे आश्रम के ब्राह्मणों को मैं दण्ड देना चाहता हूँ।' इस पर महर्षि गौतम ने कहा कि, प्रभु! उन्हीं के निमित्त से तो मुझे आपका दर्शन प्राप्त हुआ है। अब उन्हें मेरा परमहित समझकर उन पर आप क्रोध न करें, उन्हें क्षमा कर दें।' इसके बाद ऋषियों ने गौतम ऋषि एवं उनकी पत्नी से क्षमा मांगा। ऋषियों एवं देव गणों ने वहाँ एकत्र हो गौतम ऋषि की बात का अनुमोदन करते हुए भगवान्‌ शिव से सदा वहाँ निवास करने की प्रार्थना की। इस पर भगवान शिव उनकी बात मानकर वहाँ त्र्यम्बक ज्योतिर्लिंग के नाम से स्थित हो गए। गौतमजी द्वारा लाई गई गंगाजी भी वहाँ पास में गोदावरी नाम से प्रवाहित होने लगीं। तीन नेत्रों वाले शिवशंभु के यहाँ विराजमान होने के कारण इस जगह को त्र्यंबक (तीन नेत्रों वाले) कहा जाने लगा। उज्जैन और ओंकारेश्वर की तरह ही त्र्यंबकेश्वर महाराज को त्र्यंबक गाँव का राजा माना जाता है, इसलिए हर सोमवार को त्र्यंबकेश्वर के राजा अपनी प्रजा का हाल जानने के लिए नगर भ्रमण के लिए निकलते हैं।


● त्रयम्बकेश्वर के उत्सव


नगर भ्रमण के समय त्र्यंबकेश्वर महाराज के पंचमुखी सोने के मुखौटे को पालकी में बैठाकर गाँव में घुमाया जाता है। फिर कुशावर्त तीर्थ स्थित घाट पर स्नान कराया जाता है। इसके बाद मुखौटे को वापस मंदिर में लाकर हीरेजड़ित स्वर्ण मुकुट पहनाया जाता है। यह पूरा दृश्य त्र्यंबक महाराज के राज्याभिषेक-सा महसूस होता है। इस यात्रा को देखना बेहद अलौकिक अनुभव है। जिसमें शामिल होने के लिए लोगों का जमावड़ा लगा रहता है। ‘कुशावर्त तीर्थ की जन्मकथा भी रोचक है। कहते हैं ब्रह्मगिरि पर्वत से गोदावरी नदी बार-बार लुप्त हो जाती थी। गोदावरी के पलायन को रोकने के लिए गौतम ऋषि ने एक कुशा की मदद लेकर गोदावरी को बंधन में बाँध दिया। उसके बाद से ही इस कुंड में हमेशा लबालब पानी रहता है। इस कुंड को ही कुशावर्त तीर्थ के नाम से जाना जाता है। कुंभ स्नान के समय शैव अखाड़े इसी कुंड में शाही स्नान करते हैं।’ साल के 365 दिन त्रयम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं का आना जाना लगा रहता है। किंतु शिवरात्रि और सावन सोमवार के दिन त्र्यंबकेश्वर मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या अधिक रहती है। भक्त भोर के समय में स्नान करके अपने आराध्य के दर्शन करने के लिए लाइन में लग जाते हैं। यहाँ कालसर्प योग और नारायण नागबलि नामक खास पूजा-अर्चना भी होती है, जिसके कारण यहाँ साल भर लोग आते रहते हैं। त्र्यंबकेश्वर में कोई रेलवे स्टेशन नहीं है।यहां का निकटतम रेलवे स्टेशन नासिक रोड रेलवे स्टेशन है जो लगभग 40 किमी दूर हैं। नासिक रोड रेलवे स्टेशन महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई समेत देश के प्रमुख शहरों से परोक्ष रूप से जुड़ा हुआ है। नासिक स्टेशन से टैक्सी एवं बस के माध्यम से त्रयम्बकेश्वर पहुंचा जा सकता है। वहीं सड़क मार्ग से त्रयम्बकेश्वर पहुंचने के लिए राज्य सरकार द्वारा बसों के अतिरिक्त श्रद्धलु प्राइवेट बस, टैक्सी एवं निज़ी वाहनों से भी त्रयम्बकेश्वर पहुंचते हैं एवं त्रिदेव का वरदान प्राप्त करते हैं।



"सह्याद्रिशीर्षे विमले वसन्तं गोदावरीतीरपवित्रदेशे ।"

"यद्दर्शनात्पातकमाशु नाशं प्रयाति तं त्र्यम्बकमीशमीडे ।।"

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