नलहाटी शक्तिपीठ
नलहाटी शक्ति पीठ सनातन धर्म के अनुयायियों के एक लिए पवित्र स्थान है, जो कि पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकत्ता से लगभग 250 किमी दूर, बीरभूल जिले के रामपुरहाट नामक जगह में स्थित है। नलहाटी शक्तिपीठ के आस पास का इलाका पहाड़ व सुन्दर वन से घिरा हुआ हैै, जो यहाँ के सौंदर्य को कई गुना बढ़ा देता है। स्थानीय लोगों में इस शक्तिपीठ को नलतेश्वरी माता मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। शक्तिपीठ महात्म्य के अनुसार, जब देवी सती ने उनके पिता दक्षेस्वर द्वारा किये यज्ञ कुण्ड में अपने प्राण त्याग दिये थे, तब भगवान शंकर, देवी सती के मृत शरीर को लेकर पूरे ब्रह्मांड का चक्कर लगा रहे थे। इसी दौरान भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर को विभाजित कर दिया था, जिसमें से माता सती के ‘उदर नली’ का निपात इस स्थान में हुआ था।
इस शक्तिपीठ की शक्ति देवी 'कालिका' एवं भैरव 'योगीश' के नाम से पूजे जाते हैं।
एक आख्यान के अनुसार प्रेम और कामना के देवता कामदेव को इस शक्ति पीठ के अस्तित्व के बारे में सपना आया था। इसके बाद उन्होंने इस नालाहती जंगल में मां सती के ‘उदर नली’ की खोज की। कालांतर में यह शक्तिपीठ नलहती (अपभ्रंश नलहाटी) शक्तिपीठ के नाम से प्रख्यात हुआ। आज जो हम मन्दिर देख रहे हैं उसे कुछ शताब्दी पूर्व माता के एक अनाम भक्त (उसने अपना पहचान नहीं बताया) द्वारा किया गया था। फिर समय समय पर मन्दिर का पुनरुद्धार यहाँ के गणमान्य लोगों के सहयोग के होता गया।
नलहाटी शक्तिपीठ में वैसे तो सभी प्रमुख सनातनी त्योहार बड़े धूम-धाम से मनाए जाते हैं, लेकिन नवरात्र एवं काली पूजा के अवसर पर यहां विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है। साथ ही माता को विभिन्न प्रकार के पकवानों का भोग भी लगाया जाता है। यहां आने के लिए सबसे उपयुक्त समय अगस्त माह से लेकर मार्च माह माना जाता है, जब नलहती पर्वत का यह क्षेत्र अपने प्राकृतिक सौंदर्य के चरम पर होता है। रेल मार्ग पर नलहाटी जंक्शन पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता सहित अन्य पड़ोसी राज्यों से परोक्ष रूप से जुड़ा हुआ है। नलहाटी जंक्शन से शक्तिपीठ की दूरी लगभग 2 किमी है जिसे मिनी बस, ऑटो रिक्सा एवं टैक्सी से तय की जाती है। वहीं सड़क मार्ग से शक्तिपीठ तक पहुंचने के लिए बीरभूम एवं रामपुरहाट तक पश्चिम बंगाल परिवाहन की बसें नियमित अंतराल पर चलती हैं। इसके अलावा श्रद्धालु टैक्सी एवं निज़ी वाहनों का भी प्रयोग कर नलहती पर्वत क्षेत्र पहुंचते हैं, जहाँ एक ऊंचे टीले पर चढ़ कर माता का दर्शन प्राप्त होता है।
जय कालिका देवि नमो वरदे जय पापविनाशिनि बहुफलदे।
जय शुम्भनिशुम्भकपालधरे प्रणमामि तु देवि नरार्तिहरे॥
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